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सफर जो कभी खतम न हो


सोनी बार-बार अपनी फ्रॉक को नीचे खींचती ,कभी अपनी टांगे छुपाती I वह समझ नहीं पा रही थी कि अपने मां पापा से क्या बोले Iदरअसल बात यह थी कि सोनी पहली बार ट्रेन से अपने माता पिता के साथ हरिद्वार की ओर जा रही थीI गुलाबी रंग की फ्रॉक पहने,सोनी बहुत खुश थी कि वह ट्रेन में बहुत-बहुत मजा करेगी !कभी खिड़की से बाहर देखेगी ,कभी वह नीचे वाली बर्थ पर तो कभी वह ऊपर वाली बर्थ पर बैठेगी I लेकिन माता-पिता की आर्थिक हालत ठीक ना होने के कारण कारण जरनल की टिकट ली गई थी और सोनी को मुसाफिरों से सीट के लिए धक्का-मुक्की के बाद ऊपर वाली लकड़ी की बर्थ पर बिठा दिया गयI I

सफर शुरू होने के कुछ ही समय बाद अचानक उसने यह महसूस किया कि कोई उसकी टांगों को बार-बार हाथ लगा रहा हैI जैसे ही वह यह बात समझ पाती, उसने देखा कि नीचे वाली सीट पर एक युवक बैठा हुआ था ,जो बार-बार कभी अंगड़ाई लेने के बहाने तो कभी पसरने के बहाने ,वाहे ऊपर करता और लकड़ी की बनी बर्थ की दरारों में से उसकी टांगों को बार-बार छू रहा था ! इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती उस हवस के पुजारी ने उसके नितंबों पर भी उंगलियां पीनी शुरू कर दीI पहले तो उसने यह सोचा कि वह जोर से उस लड़के को डांट देगीI फिर उसने सोचा कि मां पापा नीचे बैठे हैंI वह क्या सोचेंगे और अगर वह माँ को बताएगी तो वह शायद उसको ही गुस्सा करेंगे कि वह सबके सामने क्या कह रही थी I

सोनी के दिल में यह कशमकश चलती रही, चलती रही चलती रही ,कभी वह टांगे इधर करती ,कभी वह टांगे उधर करती Iइसी कशमकश में आधा घंटा, एक घंटा ,2 घंटे बीत गए लेकिन अंगड़ाई लेने के बहाने जब-जब उस लड़के को मौका मिलता, वह अपनी वह अपनी उंगलियां उसकी टांगों पर और कभी नितंबों पर फेर देताI जिससे सोनी का दिल ट्रेन की रफ्तार से भी तेज धड़कने लगा I

 सोनी की उम्र उस दौरान तकरीबन 14 या 15 साल की रही होगी और अगर बात करूं उस युवक की तो वह युवक 25 - 27 का होगा Iजो की बड़ी ही चतुराई से अपने इन गंदे मंसूबों को अंजाम दे रहा था Iअब जैसे-जैसे ट्रेन जो अपनी मंजिल की ओर जा रही थी और अंधेरा बढ़ता जा रहा था और सोनी के मन की दुविधा बढ़ती जा रही थी कि अब वह क्या करें Iअब अगर और अंधेरा हो गया तो अब पता नहीं क्या क्या हो सकता है !उसका दिल में जैसे लाखों तूफान उठ रहे हो और सामने अपने मां बाप को देखकर भी एक शब्द भी नहीं निकाल पा रही थी ! डिब्बे में बैठा हर इंसान अपने आप में व्यस्त था I सोनी अपने आपको अपनों के बीच और अजनबी यों के बीच में अकेली थी और मदद के लिए तड़प रही थीI मानो उसका चेहरा कह रहा हो कोई तो मेरा डर समझो Iकोई तो मुझे इस वहशी जानवर से बचाओ Iकभी उठती ,कभी बैठती, कभी चोरी से उस युवक का चेहरा देखने की कोशिश करती लेकिन इस बात से अनजान उसके मां-बाप आपस में लड़ रहे थे I

चार-पांच घंटे इसी डर में रहकर मानो सोनी ने नर्क को देख लिया हो जैसे ही ट्रेन अंबाला स्टेशन के नजदीक पहुंची और रुकी वह युवक उतरने के लिए खड़ा हो गया Iखड़ा होते ही उसने पहली नजर सोनी पर डाली सोनी को मानो ऐसा लगा हो कि उसने अपनी हवस बड़ी नजरों से उसका बलात्कार कर दिया हो और उस लड़के की एक बहुत बड़ी जीत हुई हो I

लेखक की कलम से-- क्या आपने अपने बच्चों को इतना सशक्त बनाया है कि वह आपसे बिना डरे कुछ भी बात कह दे? क्या वाक्य ही आपके बच्चे आपके साथ होकर भी आपके साथ होते हैं? जरा विचार करें I अगर आपके जीवन में आपको भी ऐसे ही कशमकश से गुजरना पड़ा हो और आप की भी कोई कहानी तो हो तो अवश्य लिख कर भेजे I हम आपकी कहानी को अपने ब्लॉग में पोस्ट करेंगे ताकि इसको पढ़कर शायद कोई ना कोई छोटी बच्ची या कोई स्त्री या कोई औरत बच सकेI

 धन्यवा 

--रितु भल्ला





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