*आंकड़ों के आइने से कोरोना महामारी में बेहाली और खुशहाली की राजनीति को समझते हुए।* सभी जानते हैं कि कोरोना महामारी के कारण उद्योग-धंधे तबाह हुए हैं। करोड़ों लोगों को अपने कामकाज से हाथ धोना पड़ा है। कईं मिलों-कारखानों को नुकसान उठाना पड़ा है, जिस कारण मालिकों को छंटनी करनी पड़ी है व कामगार बेरोजगार हुए हैं। परंतु इस अति सरलीकरण से कोरोना की वर्ग-विशेषता समझ नहीं आ सकती। इसे समझने के लिए आंकड़ों का सहारा लेना बहुत जरुरी है। दरअसल विश्व पूंजीवाद को कोरोना ने और मजबूती प्रदान की है। इस बात यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि कोरोना संक्रमण सिर्फ एक ढकोसला या शासक वर्गों की एक चाल है। इसे हम इस तरह से देख सकते हैं कि इस आपदा को अवसर में बदलकर वर्ग विशेष ने अपने को समृद्ध किया है। वर्ग-विशेष के समृद्ध होने से उनकी प्रतिनिधी सरकारों को भी एक हद तक अपनी कमियां छुपाने का मौका मिला या यूं कह सकते हैं कि इस प्रकार उनका शासन भी समृद्ध हुआ। विश्व पूंजीवदी व्यवस्था के अंर्तगत आने वाले व अक्सर छिपे रह जाने वाले अंतर्विरोधों को भी इस महामारी ने उजागर किया है। वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक इस दौरान अमरीका की सबसे ज्...