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दो रास्ते एक मंजिल : संदर्भ बुद्ध धम्म और मार्क्सवाद |


5 मई 2020 को कार्ल मार्क्स का जन्म दिवस था और 7 मई  2020 को तथागत गौतम बुद्ध का |इस दुनिया में दोनों ही शख्सियतें ऐसी हुई हैं जिन्होंने अपने- अपने समय में तो लोगों को प्रभावित किया ही है , परन्तु अब भी लोगों को प्रभावित कर रही हैं | दोनों ही विचारधाराएँ मानवतावाद की सर्वोच्च अभिव्यक्तियाँ हैं| दोनों ही का मकसद रहा है एक शोषणमुक्त,भेदभाव रहित, समता मूलक समाज का निर्माण करना | हाँ, इन दोनों के रास्ते जरूर अलग- अलग हो सकते हैं परन्तु मंजिल एक ही है | बुद्ध धम्म इंसान प्रेरित समाज की बात करता है और मार्क्सवाद समाज प्रेरित इंसान की बात करता है |  अर्थात  अगर  इंसान  बुद्ध  धम्म  के अनुसार जीवन जिएगा तो समाज भी ठीक हो जाएगा क्योंकि इंसान ही तो समाज की एक ईकाई है और मार्क्सवाद के अनुसार समाज का इस तरह पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए , कि हर एक व्यक्ति अच्छी तरह जीवन यापन कर सके | बुद्ध धम्म  नैतिकता और सम्यक्ता की बात करता है जबकि मार्क्सवाद आर्थिक न्याय की बात करता है | इन दोनों में तुलना करना आसान नहीं है, एक लगभग 2500 वर्ष पहले जन्मी विचारधारा है और दूसरी लगभग 170 वर्ष पूर्व, परन्तु दोनों मानवतावादी विचारधारा की ही कड़ीयां हैं |
सिद्धार्थ गौतम से गौतम बुद्ध और उनका धम्म |
सिद्धार्थ गौतम का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व शाक्य कुल के महाराजा शुद्धोधन एवं महारानी महामाया के घर  में हुआ था। महारानी महामाया का, सिद्धार्थ गौतम के जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया और उनका पालन- पोषण महारानी की छोटी सगी बहन तथा सिद्धार्थ गौतम की मौसी महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ गौतम ने विवाह के बाद, अपने एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और अपनी पत्नी  यशोधरा को त्यागकर संसार को दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य और ज्ञान की खोज में रात को राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया  (बिहार) में बोधि -वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बन गए।
  बुद्ध धम्म का दर्शन
तथागत गौतम बुद्ध एक महान दार्शनिक एवं भौतिकवादी विचारक थे जिन्होंने इस संसार को देखने का नजरिया ही बदल दिया | उन्होंने इस संसार के अस्तित्व का कारण, किसी ईश्वर को मानने से इंकार कर दिया | उन्होंने कहा, हर एक वस्तु का अस्तित्व, कारणत्व ( कारण- कार्य)  के सिद्धांत की वजह से ही है और हर एक वस्तु परिवर्तनशील है, फिर चाहे वो प्रकृति है, मानवीय समाज है या फिर हमारे विचार हैं सब पर यही नियम लागू होते हैं और यही नियम इस संसार का, हर एक वस्तु का आधार हैं | तथागत गौतम बुद्ध ने कहा कि हमारे दुखों, परेशानीयों की वजह एक तो हमारे अपने कर्म, हमारे विचार हैं और दूसरी वजह है समाज में व्याप्त गैर- बराबरी | तथागत गौतम बुद्ध का मानना था कि इन दोनों तरह के दुखों का ईलाज निकालने से ही मानव तथा संसार सुखी हो सकता है | पहली तरह के दुखों का हल उन्होंने पंचशील में दिया और दूसरी तरह के दुखों का हल अष्टांगिक मार्ग में दिया |बुद्ध धम्म बड़ा यथार्थवादी दर्शन है और इस दर्शन में हर सवाल का जबाब दिया गया है | जैसे आप अहिंसा को ही ले लिजीए, तथागत गौतम बुद्ध ने कहा, अहिंसा एक मार्ग है न कि नियम | अर्थात जहाँ तक संभव हो सके हमें हिंसा से दूर रहना चाहिए परन्तु अगर कोई रास्ता नहीं है तो हिंसा भी जायज़ है बशर्ते आपका लक्ष्य अगर न्यायसंगत है |तथागत गौतम बुद्ध ने कहा कि अंतिम सत्य कुछ भी नहीं है, सबकुछ परिवर्तनशील है | इसलिए किसी भी  बात को मानने से पहले अच्छी तरह अपनी बुद्धि की कसौटी पर परखो और यदि तर्कसंगत लगे तो मानो अथवा छोड़ दो| समय और स्थान से काट कर किसी भी सिद्धांत को समझना मुश्किल है | इसलिए हमें बुद्ध धम्म को भी उस समय और उस स्थान में रखकर ही समझना चाहिए तब ही हम अच्छी तरह से बुद्ध की विचारधारा को समझ पाएंगे |
  कार्ल मार्क्स का जीवन और मार्क्सवाद
कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 ईसवी, ट्राईयर नामक एक छोटे से कस्बे , प्रुशिया(जर्मनी) ,एक यहूदी परिवार में हुआ था | इनके पिता एक प्रसिद्ध वकील थे और उन्होंने कार्ल मार्क्स के जन्म से पहले ही प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म अपना लिया था | कार्ल मार्क्स शुरू से ही एक प्रतिभाशाली  बालक थे, इसी कारण कार्ल मार्क्स के माता-  पिता को, उनसे बहुत उम्मीदें थीं |अपनी शुरुआती पढ़ाई करने के बाद, कार्ल मार्क्स ने बाॅन तथा बर्लिन विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र और कानून की शिक्षा हासिल की |अपनी पढ़ाई के साथ -साथ ही इन्होंने तत्कालीन राजनीतिक गतिविधियों में भी भाग लेना शुरू कर दिया था | इस दौरान कार्ल मार्क्स ने, अपने बचपन की साथी, जेनी से शादी कर ली और फिर ताउम्र एक दूसरे का साथ दिया |कार्ल मार्क्स को तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक स्थितियों ने , इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपना करियर, उज्ज्वल भविष्य तक को त्याग दिया | अपना सम्पूर्ण जीवन कार्ल मार्क्स ने मेहनतकश वर्ग को दिशा देने तथा शोषण रहित समाज के निर्माण हेतु न्योछावर कर दिया | और इस महान कार्य में, उनकी जीवन साथी, जेनी ने भी बड़ी वीरता से कार्ल मार्क्स का साथ दिया | अपने इस राजनीतिक कार्य के दौरान इन्हें कई देशों में दर - बदर होना पड़ा, आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा और इसी गरिबी तथा अभावों की जिंदगी के कारण इनके बच्चों की जिंदगीयां भी चली गई | परन्तु, यह दोनों जीवन की अंतिम सांसों तक अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे |
मार्क्सवाद एक मानवतावादी दर्शन
कार्ल मार्क्स से पहले भी बहुत से दार्शनिक हुए हैं, जिन्होंने साम्यवाद की कल्पना की है | परन्तु उन सब दार्शनिकों के प्रयास सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर ज्यादा रहे हैं | कार्ल मार्क्स पहले ऐसे दार्शनिक हुए, जिन्होंने समाज की आर्थिक विवेचना की और उन्होंने यह रहस्य उदघाटन किया कि समाज के आर्थिक संबंधों के आधार पर ही सामाजिक संस्थान, कला, संस्कृति और सामाजिक ताना- बाना खड़ा रहता है |और जैसे - जैसे समाज में आर्थिक संबंधों में बदलाव आता जाता है , वैसे- वैसे सामाजिक संस्थान, कला और संस्कृति में भी बदलाव आता जाता है |इसलिए समता मूलक समाज के निर्माण हेतु, आपको उत्पादन के स्त्रोत और उनसे होने वाले उत्पादन का न्यायपूर्ण तरीके से विभाजन करना होगा |ऐसा नहीं है कि आर्थिक संबंधों के बदलते ही सबकुछ अपने आप ही जादुई तरिके से बदल जाएगा | समता मूलक और जनवादी समाज के निर्माण हेतु , इंसान को समाज के हर क्षेत्र में काम करना पड़ेगा, फिर चाहे वो आर्थिक क्षेत्र हो, सामाजिक क्षेत्र हो या फिर सांस्कृतिक क्षेत्र हो | तो कहने का भाव यह है कि हमें आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में बदलाव के लिए हमेशा कार्यरत रहना चाहिए और अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए यह सारे क्षेत्र अंतर्संबंधित हैं |कार्ल मार्क्स ने कहा कि अब तक का सामाजिक इतिहास वर्ग संघर्षों का इतिहास रहा है और समाज आर्थिक संबंधों के आधार पर आर्थिक वर्गों में विभाजित है| मजदूरी वर्ग ही प्रगतिशील वर्ग है और तमाम मेहनतकश आबादी को मजदूर वर्ग के नेतृत्व में साम्यवादी समाज के निर्माण के लिए संघर्ष करना चाहिए | कार्ल मार्क्स के अनुसार मार्क्सवादी दर्शन का उत्तरदायित्व है कि मजदूर तथा तमाम मेहनतकश आबादी को रास्ता दिखाना और एक साम्यवादी समाज तक लेकर जाना, यहाँ सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक बराबरी हो और सबको बराबरी के मौके मिलें |कहने का तात्पर्य यह है कि बुद्ध धम्म और मार्क्सवाद मानवतावादी विचार धारा की ही कड़ीयां हैं | इन दोनों विचारधाराओं की पद्धतियों में अंतर हो सकता है परन्तु  लक्ष्य एक ही है, एक समतामूलक समाज |दोनों ही भौतिकवादी और तर्कशील विचारधाराएँ हैं, इनमें यह समानताएं भी हैं| मारक्सवाद तीन उप- भागों में विभाजित किया जा सकता है, जैसे द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, राजनीतिक अर्थशास्त्र और वैज्ञानिक समाजवाद |

प्रवीण कुमार अवर्ण |
(सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक, जम्मू ,जम्मू कश्मीर) 
email: aymangautam@gmail.com

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