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कोरोना वायरस:- मानव - मानव एक समान


आज सारी मानवता, सम्पूर्ण विश्व एक संकट के दौर गुजर रहा है ।इससे पहले भी कई तरह के संकट आए होंगे, जिनका सामना करके ही हम यहाँ तक पहुंचे हैं ।इसका सामना भी करना ही पड़ेगा और कोई रास्ता नहीं है ।

 पिछले साल, दिसंबर के महिने में शुरू हुई कोरोना वायरस, नामक बीमारी ने आज एक महामारी का रूप ले लिया है। चीन के वुहान नामक शहर से शुरू हुई इस बीमारी ने विश्व के कई देशों को अपनी चपेट में ले लिया है । भारत भी इस बीमारी से अछूता नहीं रहा है, हमारे देश में भी इस बीमारी से ग्रस्त लोगों का अच्छा- खासा आंकड़ा सामना आ चुका है ।

अभी तक इस वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है , सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव है । सरकार तथा स्वास्थ्य विभाग द्वारा समय-समय पर लोगों के लिए भी जरूरी निर्देश जारी किए जा रहे हैं । इन दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन करना ही सब लोगों के लिए बेहतर होगा।

इस संकट के दौर ने बहुत ही महत्वपूर्ण सवालों को भी जन्म दिया है , जैसे विज्ञान व वैज्ञानिक सोच का आज के समय में क्या महत्व है ? दूसरा महत्वपूर्ण सवाल है कि जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र और देश- राष्ट्र की दीवारें भी इस बीमारी को क्यों रोक नहीं पाई ? 

विज्ञान व वैज्ञानिक सोच का महत्व !

आज हर जगह सोशल मीडिया पर दो तरह की पोस्ट देखने को मिलती हैं ।एक अपने- अपने धर्म के अनुसार कोरोना वायरस का इलाज बता रहे हैं, नुस्खे बता रहे हैं और दूसरे पहले वालों पर कटाक्ष करते हुए, अपनी पोस्टों के जरिये, विज्ञान के महत्व को बताने की कोशिश कर रहे हैं ,परन्तु सच यह है कि आज हर इंसान को, चाहे वो किसी धर्म का हो , उसे वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार किए जाने का ही इंतजार है ।

बहुत सारे लोग तो मैंने ऐसे देखे, जो दिन रात प्रार्थना  कर रहे हैं कि वैज्ञानिक जल्दी से जल्दी वैक्सीन तैयार कर लें और जो राजनीतिक पार्टियां , धार्मिक संस्थाएं रात - दिन अंधविश्वासों को ही फैलाने में लगी हुई थीं, उनके नेता भी आज लोगों को बार- बार हाथ धोने, भीड़ में जाने से लोगों को रोकने तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा दिए जाने वाले निर्देशों का सख्ती से पालन करने के लिए ही बोल रहे हैं।

हाँ, यह भी सच है कि आज भी कुछ लोग अपनी धार्मिक- राजनीतिक पहचान को बनाए रखने के लिए, बहुत सारे मुर्खतापूर्ण नुस्खे और इलाज लोगों को सुझा रहे हैं, परन्तु इस तरह के लोगों को जबाब भी बहुत बढ़िया बढ़िया , साथ- साथ में ही मिल रहे हैं। जैसे कहा जाता है कि "आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है"।उसी तरह इन मुसीबत की घड़ियों ने भी हमारी वैज्ञानिक तौर पर पिछड़ी हुई सामाजिक सोच में, विज्ञान तथा वैज्ञानिक सोच के प्रति हमारे नजरिये को सकारात्मक प्रभावित किया है ।

 राष्ट्रों की सीमाएं क्यों नहीं रोक पाईं कोरोना को ? 

दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्यों आज धर्म, जाति, लिंग तथा देश- राष्ट्र जैसी दीवारें कोरोना वायरस को रोकने में सफल नहीं हो पाईं ?
यह बड़ा अहम सवाल है कि हम सामाजिक तौर पर हजारों जातियों तथा कईं धर्मों में बंटे हुए हैं .सदियों से जाति तथा लिंग के नाम पर आधे से ज्यादा आबादी को बुनियादी अधिकारों से भी वंचित रखा गया .दलितों, आदिवासियों, पिछडों तथा महिलाओं के आगे बढ़ने के रास्ते बंद रखे गए.आज भी कोई  दिन ऐसा नहीं जाता जब दलितों- आदिवासियों को उनकी पहचान के आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जाता हो ,औरतों को उनकी लिंग आधारित पहचान के कारण हिंसा, बलात्कार जैसे घिनौने अपराधों का सामना नहीं करना  पड़ता हो .

 धर्म आज भी हमारी राजनीति का आधार बना हुआ है । आज भी धर्म के नाम पर लोगों को बरगला कर, एक धर्म के अनुयायियों से दूसरे धर्म के अनुयायियों से  लड़ाया जा रहा है।धर्म के नाम पर दंगे आज भी आम बात है।हम दूसरी जाति वालों के साथ, दूसरे धर्म वालों के साथ, दूसरे देश वालों के साथ नफ़रत ही करते जा रहे हैं, परन्तु इस संकट के दौर ने दिखा दिया है कि मानव अपने आप में एक जाति है,मानवता अपने आप में एक धर्म है तथा मानव की कोई जाति नहीं हो सकता और मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता ।

 आज समय आ गया है कि हम जाति, धर्म, लिंग आधारित भेदभाव को दिमाग से निकाल कर इंसान को इंसान समझें तथा जाति, धर्म, लिंग आधारित झगडों को मिटाएं  और इसके साथ- साथ आज यह भी समझने की जरूरत है कि हम जिस मर्जी देश में रहते हों, हम एक अंतर्राष्ट्रीय मानव समाज का हिस्सा हैं ।

कैसे यह कोरोना वायरस नामक बीमारी चीन से शुरू हो कर विश्व के लगभग सारे देशों में फैल गई ।इस बीमारी को कोई भी राष्ट्र - देश की सीमा नहीं रोक पाईं और इसके साथ यह भी देखने लायक बात है कि कैसे यह बीमारी धर्म, जाति तथा लिंग आधारित भेदभाव को न देखते हुए, सबको अपनी चपेट में लिए जा रही है।

 और अंततः हम सब आज यही उम्मीद कर रहे हैं कि किसी भी जाति, धर्म, लिंग तथा देश या राष्ट्र का वैज्ञानिक इसकी वैकसीन तैयार करे और हम सबकी जान बचाए ।

कोरोना वायरस से बचाव के उपाय ।

सरकार तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा समय- समय पर बहुत सारे दिशा निर्देश, लोगों के लिए जारी किए गए हैं, जैसे बार - बार हाथ धोएं, भीड़ में जाने से बचें, ज्यादा से ज्यादा घर पर ही रहें, अपना भी बचाव रखें और लोगों को भी बचाएं इत्यादि ।

सरकारी विभाग, पुलिस विभाग तथा स्वास्थ्य विभाग द्वारा बड़ी मुस्तैदी से काम लिया जा रहा है ,परन्तु बहुत सारे आंकड़े ऐसे भी देखने को मिल रहें हैं जो हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरियों को भी उजागर कर रहे हैं ।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि देश में स्थिति इतनी गंभीर है कि प्रति 11,600 भारतीयों पर एक डॉक्टर और 1,826 भारतीयों के लिए अस्पताल में एक ही बेड हैं | देश में 84,000 लोगों पर एक आइसोलेशन बेड, 36,000 लोगों पर एक क्वारंटाइन बेड है (संदर्भ:- द वायर) 

रैमन मैग्सेसे पुरुस्कार विजेता रवीश कुमार फेसबुक पोस्ट के मुताबिक भारत में सिर्फ 30,000/-  वेंटिलेटर हैं,इस तरह के आंकड़े जो आए दिन सामने आ रहे हैं, हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की बहुत ही डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हैं ।इस संकट से तो लगता है हम जैसे- तैसे निपट ही रहे हैं।

 कोरोनो संकट को एक चेतावनी के तौर पर लेना चाहिए और जितनी जल्दी हो सके, हमें समाज में व्याप्त हर तरह की गैर-बराबरी वाले विचार जैसे जातिवाद, साम्प्रदायिकता तथा पितृसत्ता को समाज से नष्ट करके,समाज में शांति बहाली की तरफ जाना चाहिए।समाज में अगर न्याय और शांति होगी, तब ही हम लोगों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने की तरफ सोच सकते हैं।

दूसरी तरफ हमें अपने पड़ोसी देशों से भी अच्छे रिश्ते कायम करने की कोशिश करनी चाहिए ,जितना पैसा हमें डिफेंस तथा हथियारों की खरीद पर खर्च करना पड़ता है, उस पैसे से क्या हम अपने देश के लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं प्रदान कर सकते जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार ,परन्तु यह सब तभी सम्भव हो सकता है जब पड़ोसी देशों के साथ हमारे अच्छे संबंध हों और जो परेशानीयां  हैं ,उन्हें बातचीत के माध्यम से हल किया जाए।

इसके साथ- साथ लोगों को यह भी समझाने की कोशिश करनी चाहिए कि अपने देश से प्यार करना कोई गलत बात नहीं है ,परन्तु, दूसरे देश के लोगों को नफरत करना गलत है।नफ़रत वाले विचारों, नफ़रत फैलाने वाली विचारधारा का समाज में कोई काम नहीं है ,यह बात हमें अच्छे से समझ लेनी चाहिए और बाकियों को भी समझानी चाहिए ।जैसे राष्ट्रीय स्तर पर हमें ऐसे संगठनों की जरूरत है जो समता, समानता तथा मानवतावादी विचारधारा को फैलाएं और समाज को एक दिशा दें, उसी तरह हमें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसे संगठनों की जरूरत है जो पड़ोसी देशों में बातचीत के माध्यम से हल निकालवा  सकें तथा शांति बहाली की प्रक्रिया को गति दे सकें।

अंतराष्ट्रीय स्तर पर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे संगठनों का और मजबूत होना बहुत जरूरी है, जो राष्ट्रों की आपसी समस्याओं का शांतिपूर्वक हल निकलवा सकें ।

अंत में बस इतना ही कि यह अब साबित हो चुका है कि पूरे विश्व की मानव जाति एक है

- Praveen Kumar Avarn,  email:aymangautam@gmail.com
The author is a Social Activist from Jammu.

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