Poem by देवनाथ ठाकुर (भारतीय)
सत्यमेव जयते
सावधान रहो सावधान रहो सावधान रहो
"अब भी अपनी हरकत कि पहचान करो"
हम कुदरत से जुदा हैं रहते, फिदा हैं रहते हरकत में
सत्य कर्म से हट कर रहते, सटकर रहते मतलब में
अरमान - शान - जागीर के कारण, रहते सदा हम गफलत में
दूसरों को शोषण करने को, रहते सदा हम हिकमत में
अपनी कसूर काबुल ना करते, रहते दूसरों के मत्थे मढने में
आदिम से आदिम फुट करने, का नीति रहते हम गढ़ने में
करनी तो हम है करते, कहते कि जो करते वो खुदा करते
खुदा भी हमसे जुदा हुआ अब, अपमान अपना सुनते सुनते
बदनामी अपना सुन - सुन कर, कुदरत जब आजिज हुआ
हमको भी आजिज करने का, ऐसा यह तरकीब दिया
तब कोरोना विषाणु गढ़ने का, दिया आत्मज्ञान
अपने ही हरकत से अपनी, गवां देने का प्राण
हरकत तो हम एक किया, भोगे रहा सारा जहां
फिर भी हमे शर्म नहीं आता, कहते हम है बड़े महान
ऐसा हरकत यदि ना करते, नहीं होता ये अंजाम
फिर भी हम सोच रहा हूँ, करू किसको बदनाम
तब आदिम धर्म कहे कुदरत से, खता हमारी माफ करो
कोरोना विषाणु का करामात, सारी दुनिया से साफ करो।
देवनाथ ठाकुर (भारतीय)
आदिम धर्म धारक
ग्राम - जम्हैता, थाना - फतेहपुर, जिला - गया, बिहार
संशोधककर्ता
मनीष रंजन एवं हाकिम सिंह
जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय
Comments
Post a Comment