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Intellectuals are an essential component of an open society — they bring their unique analytical insights to not only scrutinise the society in its immediate form but also help shape the ideas and ideologies of the future. They conduct research, deploy critical thinking, reason, teach, author books, challenge dogma and equip us with cognitive tools to engage with the world we inhabit — just for the love of knowledge, or for the greater human good.

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बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरुरत होती है। फिल्म रिव्यू - धमाका

                                      राम माधवानी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘धमाका’ 19 नवंबर 2021 को रिलीज हुई और वाकई में धमाका कर दिया। स्टोरी दो लोगों के इर्द-गिर्द घूमती है। एक है अर्जुन पाठक जो कि एक लीडिंग पत्रकार होने के बावजूद प्राइम टाइम शो से हटा दिया गया है और अब एक रेडियो कार्यक्रम में होस्ट के तौर पर काम कर रहा है। उसकी निजी जिंदगी तनावपूर्ण है क्योंकि अभी हाल ही में उसका तलाक हुआ है। अर्जुन पाठक एक कैरियरवादी, व्यवसायवादी किस्म का पत्रकार है, जो हर हाल में अपने कैरियर में उंची बुलंदियों को छूना चाहता है। दूसरा है खुद को रघुबीर महता कहने वाला तथाकथित आतंकवादी। दोनों किरदारों की बात फोन पर होती है। रघुबीर के शुरुआती संवाद से ही वो दिलचस्प इंसान लगने लगता है - ‘‘अमीरों को क्या लगता है कि सिर्फ वही टैक्स देते हैं, गरीब भी माचिस की डिब्बी से लेकर बिजली के बिल तक हर चीज पर टैक्स देते हैं।’’ पाठक जी को लगता है कि यह एक प्रैंक काॅल है लेकिन उनका भ्रम टूटता है वो भी एक धमाके से। और यह ‘धमाका...

लफ्ज

जल्दी में , जबरन उढेलते हो खोखले 'लफ्ज़' और लौट आते हो। भीतर नीहित है जो उससे अछूते हो, नींद में बुदबुदाते हो चुकाते हो लफ्ज़। 'खामोशी' भी लफ्ज़ है लेकिन मौन है दैखती है सुनती है बूझती है और लौट आती है गर्भ में लिए - सृजनात्मक लफ्ज़। ~पल्लवी