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अतीत, वर्तमान व भविष्य की उधैड़बुन

गुलशन उधम
संक्षिप्त कहानी !

कड़ी उमस के बाद, हुई बारिश ने तापमान में थोड़ी गिरावट ला दी है। शाम में हुई इस बारिश में बच्चें बाहर मस्ती कर रहे है। लेकिन दीपिका का मन उदासीनता से भरा हुआ है। वह खिडक़ी से बाहर बारिश की ओर देखते हुए वह वर्तमान, अतीत और आने वाले भविष्य की उधैड़बुन में खोई हुई है।
इतने में मां ने उसे आवाज दी, कि वह रात के खाने के लिए सब्जी बना दे।
 दीपिका ने रूखेपन में कहा, ‘जिन्होंने रात में खाना खाना है वे खुद बनाए। मैं क्यों बनाऊं  और वैसे भी मैं अब तो पराए घर को जाने वाली हूं न।’


मंा बेटी के इस चिड़चिड़ेपन को समझ रही है। लेकिन वह भी क्या कर सकती है। वे खुद भी तो अपने माता-पिता के द्वारा ब्याह दी गई थी।
पास जाकर, मां ने बेटी के सर पर हाथ रखते हुए कहा कि ‘अच्छा ठीक है, मैं खुद बना देती हूं। तुम बताओ तुम्हें क्या खाना है, आज?’
दीपिका ने फिर झल्लाते हुए कहा कि ‘ मां तुम्हारे बोल अब मुझे कसाई के बोल क्यों लग रहे है, जो हलाल होने वाली बक री को मनपंसद का चारा खिलाता है।’

मां ने प्यार के साथ डांटते हुए कहा ‘ मुझे पता है कि तुम गुस्से में हो लेकिन इसका मतलब ये नही है कि तुम कुछ भी बोलो। 
जो कुछ भी हो रहा है तुम्हारे भले के लिए ही तो कर रहे है। और फिर इसमे बुरा ही क्या है। आखिर एक न एक दिन तो शादी करनी ही है न।’
दीपीका ने कहा ‘बस! मुझे नही करनी शादी। मुझे अपने तरीके से जिंदगी को जीना है। जब मन करेगा तभी करूंगी शादी। और आप सब मुझ पर अपना फैसला थोप नही सक ते।’
मां बेटी को समझाने की कोशिश में कहती है, ‘ दीपी, खुद फैसले लेने का अधिकार अभी किताबों में लिखा गया है। उसे अमल में नही लाया जा सकता। और जो घर के बढ़ो को सही लगेगा, उस फैसले को तुम्हें भी मानना होगा।’

इतना कह कर मां रसोई की ओर चली गई।
दिपीका भी चीख चिला कर शांत हो गई। देर रात तक वे जिंदगी, सच्चाई, अधिकार, जिम्मेदारियां, सही , गलत के बारे में सोचती रही।’ और फिर गहरी नींद में सौ गई।
अगली सुबह, सहेली रैनू का फौन आया।

फौन पर रैनू ने कहा, ‘कहां हो तुम, तीन बार कॉल की तुम्हें। जिंदा हो कि मर गई हो। जल्दी करो, एनओसी लेने युनिर्वसिटी जाना है। उसे बीएड कालेज में जमा करवाने का आज आखिरी दिन है। बस निकल जाएगी, तो फिर परेशानी बनेगी। ’
एक साथ रैनू इतना कुछ कह गई।
दीपीका ने हल्के स्वरों से कहा, ‘तुम जाओ, रैनू। मेरा मन नही है।’
फिर झगड़ा किया तुमने मम्मी से। , रैनू ने कहा।
समझ आ गया है मुझे, बस पंद्रह मिनट में आ जाओ बस स्टाप पर, सबे तुम्हारा इंतजार कर रहे है। रैनू ने कह कर फोन कट कर दिया।
दिपीका ने किसी तरह हिम्मत जुटा कर युर्निवसटी जाने की तैयारी की।
मां ने खाना दिया खाने को, पर हर बार कि तरह झगड़े के बाद वह बिना खाए ही युर्निवसटी को चल दी।
बस स्टाप पर सहेलियां एक-दूसरे को खुशी-खुशी मिली। और दीपीका की उदासी को सबने जान लिया था।
भूमि जो कि दीपीका की रैनू के बाद की करीबी सहेली थी।
ने कहा कि, दीपीका, जो सच है उसे जितनी जल्दी स्वीकार कर लिया जाए उतना ही अच्छा है।
हम सब कुछ कर सकती है लेकिन बंद दिवारों के भीतर ही। यहीं हमारे जीवन का सच्चाई है। और तुम्हारे वो तो अच्छी नौकरी करते है। घर-बार ठीक है। तो फिर तुम्हें किस बात की कमी है। तुम भी कल को नौकरी करने लगोगी लाईफ  तो सैट है तुम्हारी, मेरी जान, भूमि ने कहा।

लेकिन दीपीका की उदासी अभी भी बरकार थी।

उसे उसके सवालों के जवाब नही मिल पा रहे थे।
झल्लाते हुए दीपीका ने अपनी दोस्तों से कहा, तुम सब जाओ, मुझे नही जाना है कहीं भी।
हां, हमें पता है तुमने कहीं नही जाना है, बस हमारे साथ युर्निवसटी चलो अब। बस आ गई है, बस को देखते हुए, रैनू ने कहा और फिर बस युर्निवसटी की ओर चल पड़ी।

सब सहेलियां पूराने यादों को ताजा कर रही थी। इन सब में दीपीका अब भी अपनी उलझनों को सुलझाने की कोशिश कर रही थी। किसी याद में उसका नाम आता तो वह बस हल्की सी मुस्कराहट बिखेर देती। और बातों-बातों में ध्रुव के जिकर आने पर उसकी बैचेनियों को और भी बढ़ा दिया। दीपीका ने युर्निवसटी के पुराने दिनों में खो गई। 

धु्रव, दीपीका का सहपाठी तो नही लेकिन बस के सफर का सहयात्री तो था। दोनो की चाह थी कि वे हमसफर भी बनते लेकिन इस सपने ने युर्निवसटी के सफर के साथ ही दम तोड़ दिया। 

उधर धु्रव करियर को तराशने के लिए दिल्ली चला गया। इधर दीपीका ने आगे बीएड एडमिशन के लिए आवेदन कर दिया। आज के सोशल नेटवर्किंग दौर में भी जब सब लोग आपस में जुड़े है। लेकिन धु्रव और दीपीका फिर भी न जुड़ सके। ये सब बातेें दीपीका के मन में कई लहरों को जन्म दे रही थी।

एक उम्मीद की कीरण थी दीपीका की जिसके लिए वह खुद भी युर्निवसटी जाना चाहती थी। वह थी उसकी शिक्षिका।

युर्निवसटी पुहंच एनओसी के आवेदन की प्रक्रि या पूरी करते ही दीपीका अपनी सहेलियों संग शिक्षिका से मिली। सब ने अपनी यादें साझी की। लेकिन दीपीका की उधैड़बुन अब भी जारी थी। शिक्षिका के पूछने पर रैनू ने बताया कि घर वाले दीपीका की शादी करवा देना चाहते है लेकिन दीपीका का मन पहले शिक्षा पूरी कर नौकरी  करने का है। शादी के लिए घर वाले अब उस पर दवाब बना रहे है।

इन बातों ने उस माहौल में चुपी ला दी। किसी के पास इस सवाल का कोई जवाब नही आ रहा था। कोई कहता है। लड़कियां कर भी क्या सकते है। किसी ने कहा ये तो जमाने की रीत है। शादी तो करनी ही है एक दिन फिर अभी क्यों नही। शिक्षा तो चलती ही रहेगी। बला-बला। लेकिन ये सब जवाब दीपीका की उलझनों को हल नही कर पाए।
एकाएक कमरे में चुपी बन गई।
----इति।

इस उधैड़बुन को सुलझाने में दीपीका का सहयोग करे। अगर आपके पास इस उलझन का कोई उपाय है तो लिख भेजे।
यहाँ कमेंट या मैसेज करे।
सारी कोशिश इसलिए, कि चुपी तोड़ी जा सके।

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